Moral Hindi Kahani एक जंगल में एक महान ऋषि थे. वह बहुत बड़े तपस्वी थे. उनका रोज का काम था कि वे प्रातः एक नदी पर आते, वहाँ स्नान करते और एक पत्थर के तुकडे पर आसन जमाकर तपस्या करते.
वहीँ नजदीक में उनकी कुटिया थी. वहाँ वे और उनकी पत्नी रहते थे. एक दिन उनके साथ एक अजीब सी घटना घटी. वे नित्य की भाँती जब पूजा करके अपने हाथ खोले ही थे एक नन्ही सी चुहिया उनके हाथ पर आ गिरी.
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उन्होंने जैसे ऊपर एक चील उड़ती हुई जा रही थी. उनको यह समझते देर नहीं लगी कि यह चुहिया चील के पंजों से ही छूटकर गिरी है. चुहिया डर के मारे काँप रही थी.
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ऋषि को कोई संतान नहीं थी और उन्हें यह भी ज्ञात था कि उनके जीवन में संतान सुख नहीं है. पत्नी के कहने पर वे झूठी दिलासा देते रहते थे जो भाग्य में होगा वही होगा.
Chuhiya aur Rishi ki Kahani. Popular moral story in Hindi.
उन्हें चुहिया पर दया आ गयी. उनके पास मौक़ा भी था. उन्होंने हाथ में जल लिया और उसे अभिमंत्रित कर चुहिया पर फेंका. चुहिया एक मानव बच्ची में परिवर्तित हो गयी.
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वे उस नन्ही बच्ची को लेकर घर पहुंचे और पत्नी से बोले ” तुम सदा संतान की कामना करती थीं. आज प्रभु ने तुम्हारी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और यह बच्ची भेज दी. इसे अपनी पुत्री समझकर इसका लालन – पालन करो “.
ऋषि पत्नी बच्ची को देख बहुत प्रसन्न हुई. उन्होंने उसका नाम मयूरी रखा. ऋषि ने अपनी पत्नी से चुहिया वाली घटना का जिक्र नहीं किया उस बच्चीके प्यार में वह भी उस घटना को भुलाने लगे.
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ऋषि और उनकी पत्नी बच्ची से बहुत प्यार करते थे. ऋषि पत्नी तो उस बच्ची के प्यार में खुद को भी भूल गयी थीं. वे दिन – रात उसे खिलाने-पिलाने और उसके साथ खेलने में लगी रहतीं.
समय आने पर ऋषि ने मयूरी को उत्तम शिक्षा दी और अब वह समय आ गया जब मयूरी विवाह योग्य हो गयी. वे बात कर ही रहे थे कि तभी मयूरी वहाँ आ गयी.
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उसने केशों में फूल गूँथ रहे थे. वह बहुत खूबसूरत लग रही थी। ऋषि ने सोचा पत्नी ठीक ही कह रही है. उन्होंने तपोबल से सूर्यदेव का आव्हान किया.
सूर्यदेव उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें प्रणाम करते हुए कहा, ” कहिये मुनिवर! क्या आज्ञा है?” ऋषि ने मयूरी की और इशारा करके कहा, ” यह मेरी बेटी है. सर्व गुण संपन्न है. मैं चाहता हूँ की आप इससे विवाह करें.”
” नहीं पिताश्री, यह तो अग्नि के सामान गर्म हैं और इनके प्रकाश से मेरी आँखे चौंधिया रही हैं. मैं तो ना कभी इनके निकट जा सकुंगी और ना ही इन्हें देख सकुंगी.”
ऋषिवर बोले, ” ठीक है. हम दूसरा वर देखते हैं” उन्होंने सोचा, ” बादल इसमें उपयुक्त रहेगा. वह सूर्य को भी ढँक लेता है. मैं उसे बुलाता हूँ . ” यह सोचकर उन्होंने बादल का आह्वान किया . बादल गरजते हुए, बिजलियाँ चमकाते वहाँ पहुंचा.
लेकिन उसे देखते ही मयूरी ने कहा, ” पिताश्री! यह तो काले रंग का है और मैं गोरी हूँ और दूसरा यह बार बार बिजली चमका रहा और बिजली से मुझे भय लगता है. मैं इससे विवाह नहीं कर सकती हूँ.”
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इसके बाद ऋषि ने पवन देव का आह्वान किया, लेकिन मयूरी ने उन्हें भी मना कर दिया. फिर पर्वतराज आये लेकिन वो भी मयूरी के मन ना भाये. उसके बाद पर्वतराज ने सुझाया कि, ” चूहा इसके लिए श्रेष्ठ वर होगा. वह मुझे भी छेदकर बिल बनाकर उसमें रहता है. ” उनके इतना कहते ही मयूरी ख़ुशी से उछल पड़ी और बोली, ” हाँ पिताजी, मुझे चूहे बहुत प्रिय हैं. उनकी पूंछ और कान कितने खूबसूरत है. मेरा विवाह चूहे से करा दीजिये .”
पहले तो ऋषि ने इस बात को टाला. फिर मानं गए और उन्होंने चूहे को बुलाया. मयूरी चूहे को देखकर बहुत प्रसन्न हुई. ऋषि ने सोचा मैंने इसे तो मन्त्र के बल पर चुहिया ने मानवी बना दिया परन्तु इसका दिल तो चुहिया का ही रहा. उसके बाद ऋषि ने उसे फिर से चुहिया बना दिया और उसका विवाह चूहे के साथ कर दिया.
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Thanks so much for reading Chuhiya aur Rishi ki Kahani.