अन्नपूर्णा कहानी एक आदर्श बहू की

अन्नपूर्णा एक आदर्श बहू की कहानी. Best family moral story in Hindi. अन्नपूर्णा हिंदी कहानी Hindi ki Kahani Reading. जो अन्न से परिपूर्ण हो तथा अपना ख्याल ना रखते हुए भी घर के सदस्यों का ख्याल रखे, उसे ही अंनपूर्णा कहते हैं.


अन्नपूर्णा हिंदी कहानी ( Hindi ki Kahani Reading )


अंनपूर्णा मतलब जो अन्न से परिपूर्ण हो तथा अपना ख्याल ना रखते हुए भी घर के हर सदस्यों का ख्याल रखे, उसे ही annpoorna कहते हैं.......रतनलाल अपने पोती और पोते तथा पड़ोस के दो-चार बच्चों को समझा रहे थे.


बाबू जी नाश्ता लीजिए...रतन लाल की बहू रीमा धीरे से बोली.

हाँ बेटा कहते हुई रतनलाल जी ने प्लेट पकड़ी और बच्चों से कहा बेटा यही तो है अंनपूर्णा.

लेकिन ये हमारी मम्मी है...उनकी पोती स्वाती ने मासूमियत से कहा.

हँसते हुए रतनलाल जी ने कहा कि हां यह आपकी मम्मी ही है.

तो आपनी झूठ क्यों बोला...आप ही तो कहते हो झूठ बोलना पाप है...नदी किनारे सांप है.....उनका पोता राजेश इठलाते हुए बोला.

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अच्छा एक काम करो, चलो पहले हम सभी लोग नाश्ता कर लेते हैं ....फिर आपको इस बारे में बताएंगे....फिर सभी लोग नाश्ता करने लगते हैं.

घर की खुशहाली अन्नपूर्णा

अन्नपूर्णा आदर्श बहू कहानी

 

अरे भाई मेरी टाई कहां गयी...रीमा ढ़ुंढ़ो तो ज़रा और हां मेरा लंच बॉक्स भी रेडी कर देना....मैं नहा कर आ रहा हूँ..रीमा के पति शेखर ने कहा.

मम्मी हमीं स्कूल जाना है...तोड़ा जल्दी करो ना...राजेश ने वहीं अपने दादा के पास बैठे-बैठे आवाज़ लगाई.ठीक ठीक... रूको अभी पापा की टाई ढूँढ कर आपका भी लंच देती हूँ.

सफलता प्राप्त करने के 3 टिप्स

पापा कितने भुलक्कड़ हैं ना...स्वाती ने हँसते हुए कहा और राजेश ने भी उसकी हां में हां मिलते हुए उसे ताली दी.इतने में शेखर तैयार होकर निकाला, उसका सारा समान रेडी था....उसने दो ब्रेड उठाई और फटाफट आफ़िस के लिए निकला.

तब तक बस आ गयी और रीमा बच्चों को छोड़कर लौटी और रतनलाल से बोली..बाबूजी आप भी नहा लीजिए...पानी गरम करके रखा हुआ है.ठीक है बेटा...रतनलाल जी ने कहा और नहाने चले गये...नहाकर जब वे वापस आए तो उनका खाना लगा हुआ था.

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बहू अन्नपूर्णा की कहानी


वह खाना खाकर सोच ही रहे थे कि रीमा आकर सब बर्तन ले गयी...रतनलाल देख रहे थे कि सब कुछ सही से चल रहा था...किसी को कहीं भी कोई शिकायत नही थी...क्योंकि उनकी बहू अंनपूर्णा थी.

बाबूजी मैं आफ़िस के लिए निकल रही हूँ, यह घर की चावी अपने पास रख लीजिए ....कहते हुए रीमा तेज़ी से कदम बढ़ती हुये आफ़िस के लिए निकल पड़ी.

और रतनलाल अपनी बीती हुई जिंदगी में खो गये जो उन्हें १५ साल पीछे ले गयी....चलचित्र की तरह सबकुछ उनकी आँखों के सामने सब कुछ चलने लगा.

दो दोस्तों की कहानी

रमनलाल की पत्नी को स्वर्ग सिधारे करीब ६ साल हो गये थे. रमनलाल की मां अपनी बहू को अंनपूर्णा नाम दिया हुआ था. पूरे का कितना ख्याल रखती थी मालती. कुछ कहने पर कहती कि " मां और बाबूजी दुबारा थोड़े ही मिलेंगे".इस बात पर सभी चुप हो जाते थे.

आदर्श बहू की कहानी


शाम के ५ बाज गये थी...रीमा ने डोर बेल बजाई.....कुछ देर बाद रतनलाल ने दरवाजा खोला....वैसे वे दरवाजा जल्दी खोल देते थे...रीमा कुछ कहे उसके पहले ही रतनलाल ने कह दिया कि बेटा आज मई थोड़ा सो गया था... इसीलिए थोड़ी देर हो गयी.

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अरे देर कहां हुई बाबूजी...मैं तो अभी आई हूँ...रीमा ने बात को टालते हुए कहा...चलिए बाबूजी मैं चाय बनती हूँ....बच्चे भी आते होंगे...आप फ्रेश हो जाइए.

परिवार का ख्याल रखने वाली बहू की कहानी

इतने में बच्चे भी आ गये...पूरे घर में जैसे जिंदगी आ गयी.....इसी बीच रीमा ने चाय रखा और फ्रेश होने चली गयी.रतनलाल सोचने लगे....अपनी सास का पूरा गुण रीमा को मिला है, कितना ख्याल रखती है पूरे परिवार का.

तभी शेखर की गाड़ी दरवाजे पर आ गयी...दोनो बच्चे...पापा..पापा कहते हुए बाहर गये और आज बाहर कहीं घूमने की ज़िद करने लगे.नहीं बेटा आज बहुत ही काम है...शेखर ने कहा.

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आपको को हमारे लिए समय ही नहीं होता है....स्वाती ने पैर पटक कर कहा.

सही तो कह रही है बिटिया....कभी तो साथ घुमाने ले जाया कर.....रतनलाल ने शेखर को डाँटते हुए कहा.

पर बाबूजी...

क्या बाबूजी....आज तू इन बच्चों को घुमाने ले जाएगा.

जाने दीजिए बाबूजी....मैं इन्हे घुमा लाऊँगी.....रीमा ने कहा.

अंनपूर्णा...जो घर को खुशियों से भर दे.

देख यह है अंनपूर्णा.....अपना ख्याल ना रखते हुए सुबह से लेकर शाम तक सिर्फ़ परिवार के लिए भागती रहती है....कभी किसी नी इसकी तरफ देखा...क्या इसे आफ़िस में काम नहीं होता.....बच्चों आप पूछ रहे थे न कौन होती है अंनपूर्णा?...तो बच्चों यह है अंनपूर्णा....आप लोग चाहे जो भी किसी नाम से इसे बुलाएं....लेकिन मैं इसे अंनपूर्णा ही कहूँगा......अंनपूर्णा...जो घर को खुशियों से भर दे.

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