सुई, लाठी और घुंघरू की कहानी

सुई, लाठी और घुंघरू की कहानी

सुई बेचारी क्या करती उसकी धौंस सुन रही थी। इतने में ‘ मधुकर ‘ घुंघरु अपनी मधुर आवाज में बोला, ” लाठी तुम ठीक कहती हो लेकिन कभी यह सोचा है कि तुम्हारी अहमियत लठैत की वजह से है, जिसके हाथ में तुम रहती हो। अगर वह लठैत तुम्हारा त्याग कर दे तो तुम्हारा कोई वजूद नहीं रहेगा। ”

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"ऐ घुंघरू, चुप कर, वरना एक ही वार में तुझे बिखेर दूंगी। बहुत आवाज निकलने लगी है तेरी।” लाठी ने बड़े ही क्रोध से कहा। बेचारा मधुकर घुंघरू चुप हो गया।

इस पर सुई ने कहा, ” घुंघरू पर क्यों रौब दिखा रही हो। इस दुनिया में सबका अपना महत्व है। कोई किसी काम में आता है तो कोई किसी काम में। तुम जिस लठैत के पास रहती हो उसकी पोशाक पर की कसीदा करी कौन करता है? उसकी पोशाक कौन बनाता है ? क्या यह सब तुम कर सकती हो ? ”

"मैं कर नहीं सकती लेकिन जबरन यह काम करवा सकती हूं। हमारे पास इतना दम है।” कहकर लाठी ने पतली सुई की तरफ उपेक्षा से देखा।

पतली सुई ने कहा, ” अब इसका फैसला तो समय ही करेगा क्योंकि वही सबसे बलवान है।”

इस सब के बीच ‘ घुंघरू ‘ वहाँ से जाने लगा तो लाठी ने उसका मजाक उड़ाते हुए कहा, "अरे घुंघरू किधर चला। तेरी तो कोई औकात ही नहीं है। लोगों के पैरों में बंधा बजता रहता है। ”

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इस पर घुंघरू को भी गुस्सा आ गया। उसने कहा, "तुम्हारी भी कौन सी औकात है। काम पूरा होने के बाद तुम्हे लोग एक कोने में फेंक देते हैं। जबकि हमारी मधुर आवाज से लोगों को शान्ति मिलती है। तुम्हारी हिंसा के कारण तुम्हे तिरस्कार मिलता है।”

किसी तरह से इनके बीच का वाकयुद्ध बंद हुआ। एक दिन लठैत के पांव में कांटा चुभ गया। उसने काँटा निकालने का बहुत प्रयास किया, लेकिन सब बेकार रहा।

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लठैत ने काँटा निकालने के लिए सुई मंगवाया, लेकिन सुई ने अपना मुंह टेढ़ा कर लिया। लठैत को दर्द की वजह से बहुत ही तकलीफ हो रही थी। यह लाठी से देखी नहीं जा रही थी। ”

लाठी बहुत ही उदास थी, तभी पतली सुई ने व्यंग से कहा, "कैसी हो लाठी बहन ? ”

सुई की आवाज सुनकर लाठी को बहुत गुस्सा आया, लेकिन उसने गुस्से को काबू करते हुए, "मुझे तुम्हारी बात समझ में आ गयी है। सबकी अपनी – अपनी अहमियत होती है। तुम लठैत की मदद करो। वह बहुत ही तकलीफ में है। ”

"ठीक है, लेकिन इस समय लठैत कहाँ पर है।” सुई ने पूछा।

वह ‘घुंघरू' की मधुर धुन से जी बहला रहे हैं। उसके बाद सुई ने लठैत को काँटा निकालने की अनुमति दे दी। काँटा निकलने के बाद लठैत ने राहत की सांस ली और इसी से यह बात साबित हो गयी कि कोई छोटा – बड़ा नहीं होता है। सबकी अहमियत होती है।

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